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निर्भया के दोषी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज

नई दिल्ली

निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में दोषी मुकेश कुमार सिंह का अब फांसी चढ़ना तय हो गया है। निर्भया के दोषी मुकेश की दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस में कोर्ट का दखल जरूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति के समक्ष सारे दस्तावेज रखे गए और उन्होंने सब देखकर ही फैसला लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया मामले पर कहा कि जेल में कथित पीड़ा का सामना करने को राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के खिलाफ आधार नहीं बनाया जा सकता। उच्चतम न्यायाल ने कहा कि दया याचिका के शीघ्र निपटारे का मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति ने सोच-समझकर फैसला नहीं किया। उनके सामने सारे दस्तावेज प्रस्तुत किए गए और उन्होंने सब देखकर ही फैसला लिया।

बता दें कि निर्भया के दोषी मुकेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली में 2012 में हुए इस जघन्य अपराध के लिए चार मुजरिमों को अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। इन दोषियों में से एक मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज कर दी थी जिसके खिलाफ इस दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है।

सॉलिसीटर जनरल ने पीठ से कहा कि राष्ट्रपति को दया के बारे में खुद को आश्वस्त करना होता है और प्रत्येक प्रक्रिया को नहीं देखना होता। इससे पहले, दोषी मुकेश कुमार सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने दावा किया कि उसकी दया याचिका पर विचार के समय राष्ट्रपति के समक्ष सारे तथ्य नहीं रखे गये।

इस पर पीठ ने मुकेश के वकील से सवाल किया कि वह यह दावा कैसे कर सकती हैं कि राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका पर विचार के समय सारे तथ्य नहीं रखे गये थे। पीठ ने सवाल किया, ‘आप कैसे कह सकती हैं कि ये तथ्य राष्ट्रपति महोदय के समक्ष नहीं रखे गये थे? आप यह कैसे कह सकती हैं कि राष्ट्रपति ने सही तरीके से विचार नहीं किया?’

दोषी के वकील ने जब यह कहा कि राष्ट्रपति के समक्ष सारे तथ्य नहीं रखे गये थे तो सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि राष्ट्रपति के समक्ष सारा रिकार्ड, साक्ष्य और फैसला पेश किया गया था। मुकेश कुमार सिंह ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका अस्वीकार करने में प्रक्रियागत खामियां हैं और उसके मामले में विचार करते समय उसे एकांत में रखने सहित कतिपय परिस्थितियों और प्रक्रियागत खामियों को नजरअंदाज किया गया।

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