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सपने कभी सच नहीं होते, बेशक वह किसी को दिखाए जाते हों या फिर खुद को दिखाई देते हों!

मुंजाल साहब तो बठिंडा में कारखाना लगा देते, पर खजाना ही खाली था!
वादे किए थे, पूरे भी हो जाते, पर खजाना भी तो लबालब होना चाहिए
स्कूलों की नुहार बदली, शिक्षा का स्तर ऊपर उठाया, बेशक अध्यापकों की कमी है
करने से ज्यादा दिखावा अच्छा होता है और जो दिखता है वही तो बिकता है

पपिन्दर सिंहमार

फिर से चुनाव आ गए, फिर से आम जनता को नए-नए सपने दिखाए जा रहे हैं, परंतु जनता सब जानती है, जो कुछ भी नहीं भूली, बेशक वह अपने नेताओं को दिलों जान से चाहती है। कोई कहता है, 5 साल पहले फलाने नेता ने फलाना वादा किया था, कोई कहता है, 5 साल पहले किया गया कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ, तो कोई कहता है, चलो छोड़ो! हमें क्या लेना? अगर पुराने वादे पूरे नहीं हुए, तो क्या हुआ, नए वादे तो सुनने को मिलेंगे। 5 साल पहले खजाना लबालब था और वादों की झड़ी भी लगी थी। अरे हां! एक बात और याद आई, वह अपने मुंजाल साहब का भी नाम 5 साल पहले सामने आया था, शायद किसी नेता के साथ उनकी बैठक हुई होगी या फिर मुंजाल साहब ने नेताजी को सपने में कोई वचन दिया होगा, तभी तो मुंजाल साहब बठिंडा में कारखाना लगाने वाले थे, परंतु खजाना ही खाली था, तो बेचारे मुंजाल साहब क्या करते? अब खाली खजाने से तो कारखाना लगने से रहा। अरे! याद आया, शायद मुंजाल साहब, शब्दों के जादूगर नेताजी के सपने में आए थे और नेता जी ने भी उनके सपने को सच मान लिया तथा बठिंडा में मुंजाल साहब की तरफ से कारखाना लगाने का वादा कर दिया। अब भला नेताजी को क्या दोष दें? क्योंकि सपना सच तो नहीं होता और अगर सच हो भी जाता, तो क्या होता? क्योंकि नेताजी के हाथ में खजाने की चाबी थी और उस खजाने में पैसा नहीं था, यही तो कुछ 5 सालों से सुनते आ रहे हैं, कि खजाना खाली है, खजाना खाली है, फिर भी जनता है ना कि समझती ही नहीं है। अरे भाई लोगो! 5 साल का टाइम गुजर गया, अब नए सिरे से कुछ करना होगा और हर कोई सपने वाली बात बताता भी नहीं है, पर भला हो हमारे नेता जी का, जिन्होंने दीन ईमान से अपना सपना आम जनता के सामने सुना दिया। अरे! एक और बात याद आ गई, वह क्या है ना कि यही समझ नहीं आ रहा, कि पंजाब में सरकार किसकी चल रही है? क्योंकि जिस पार्टी द्वारा सरकार का संचालन किया जा रहा है, उसी पार्टी के एक बड़बोले प्रधान द्वारा तरह-तरह के ऐलान कर दिए गए कि अगर उनकी सरकार आ गई, तो वह यह कर देंगे, वह कर देंगे, सब कुछ कर देंगे, परंतु भाई! उन बड़बोले नेता जी को कोई पूछे तो सही कि अब यह सरकार कौनसी पार्टी चला रही है? जो आप भविष्य में करने वाले हैं, वह वर्तमान में नहीं हो सका। वह बड़े नेता जी तो ठोको ताली ही बनकर रह गए। भाई! उनको यह भी नहीं दिखाई दे रहा कि पंजाब में कोई सरकार चल भी रही है और हां एक बात और! नेता जी भी तो एकदम ठीक बोल रहे हैं, क्योंकि सरकार नाम की तो कोई चीज ही नहीं है। सब मदारी का खेल चल रहा है, अब पार्टी द्वारा एक मुख्यमंत्री को कुर्सी से नीचे उतार दिया गया और दूसरे को कुर्सी पर बिठा दिया गया, परंतु जिनको कुर्सी पर बैठाया गया है, उनको यह हमारे बड़बोले नेता जी मुख्यमंत्री ही नहीं कहते और कहें भी कैसे? क्योंकि मुख्यमंत्री तो सरकार का संचालन करते हैं, परंतु यहां वाले मुख्यमंत्री तो कभी डीजे बजाने लग जाते हैं, कभी रिक्शा चलाने लग जाते हैं, कभी चारपाई बुनने लग जाते हैं, कभी बिजली की तारें ठीक करने लग जाते हैं और न जाने क्या-क्या काम करने लग जाते हैं, तो भला उन्हें मुख्यमंत्री कौन कह देगा। अरे हां! भाई मैं तो भटक गया था, बठिंडा से अमृतसर तक पहुंच गया, पहुंचना था भी क्यों ना, क्योंकि बठिंडा से श्री अमृतसर साहिब तक फोरलेन सड़कें जो बन गई हैं। माफ करना! हम वापस बठिंडा पहुंच गए हैं, बठिंडा की गलियों में पहुंच गए हैं, नेताजी के भाषण सुन रहे हैं और हैरानी की बात तो यह है कि नेता जी को 5 साल पहले जनता से किया गया कोई भी वादा याद नहीं है, बेचारे याद रखें भी कैसे? क्योंकि इनको तो खाली खजाने ने सब कुछ भुला दिया। ठहरो! एक और बात याद आ गई और वह यह है कि हमारे शब्दों की जादूगरी करने वाले इन नेता जी ने जो वादे किए थे, वह तो शायद पूरे नहीं हुए, परंतु सरकारी स्कूलों की इमारतें बहुत अच्छी बनाई हैं, सड़कों का भी टाइलों द्वारा सौंदर्यकरण किया गया है और नेता जी की टीम साफ-साफ जनता को बतला रही है कि हमारे नेता जी ने इतने अच्छे स्कूल बना दिए, परंतु उनमें अध्यापक नहीं हैं और जो अध्यापक हैं, वह सड़कों पर भटक रहे हैं, क्योंकि उन्हें पे कमीशन में इंसाफ नहीं मिला है, फिर भी शिक्षा में बेहद सुधार हुआ है, क्योंकि सरकारी स्कूलों की इमारतें निजी स्कूलों की इमारतों को मात दे रही हैं। शिक्षा में सुधार इमारतें बनाने से ही हो जाता है और यह हमारे नेता जी तथा उनकी टीम ने साबित भी कर दिखाया है। वैसे भी अध्यापकों की कमी पूरी करने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता, अध्यापकों को पूरा वेतन देने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता, क्योंकि कोरोना, स्कूलों में जो बैठ गए हैं, जिनसे बच्चों को खतरा पैदा हो रहा है और स्कूलों में छुट्टियां चल रही हैं, ऐसे में अगर अध्यापकों की नई भर्ती कर दी जाती है तथा पे कमीशन को दुरुस्त करके उसे लागू कर दिया जाता है, तो खजाने पर फालतू बोझ पड़ेगा तथा फिर से बोलना पड़ेगा कि खजाना खाली है। नेता जी ने जो फैसला लिया है, वह ठीक है कि स्कूलों की इमारतें सुंदर होनी चाहिए, बेशक अध्यापकों की कमी हों तथा कोरोना करके अध्यापकों की कमी को पूरा करने का कोई फायदा नहीं है। माफ करना जी, अगर कोई गलती हो जाए तो यह समझना नादान हैं तथा जैसे जनता से वादे करके नेताजी भूल जाते हैं, वैसे ही इस बड़बोलेपन में की गई गलती को भूल जाना।

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