जालंधर – आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सदस्य एवं पर्यावरणविद् संत बलबीर सिंह सीचेवाल सतलुज दरिया में उफान के कारण जालंधर में आई बाढ़ के लिए अपनी ही पार्टी की सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सीचेवाल की तरफ से सरकार को कठघरे में खड़ा करने से विपक्ष के बाढ़ से बचाव के समय पर प्रबंधन न करने के आरोपों को भी बल मिला है।
संत सीचेवाल का कहना है कि जालंधर स्थित शाहकोट उपमंडल के लोहियां क्षेत्र के गिद्दड़पिंडी के रेलवे पुल के नीचे जमा सिल्ट को लेकर वह पिछले वर्ष से ही चेतावनी दे रहे थे। रेलवे पुल सतलुज दरिया से लगभग 21 फीट ऊंचा है, लेकिन इसके नीचे 17 फीट सिल्ट जमा है। मात्र चार फीट जगह ही पानी के निकलने के लिए बची है। सिल्ट हटाने का काम समय पर शुरू ही नहीं हो सका। इसका नतीजा यह निकला कि जिले के लगभग 50 गांव बाढ़ की चपेट में आ गए।
उधर, विपक्षी पार्टियां भाजपा, कांग्रेस और शिअद शुरू से ही सरकार को बाढ़ के लिए जिम्मेदार ठहरा रहीं हैं। इनका आरोप है कि सरकार ने बाढ़ नियंत्रण के लिए समय रहते तैयारी नहीं की थी, इसी वजह से बाढ़ ने विकराल रूप धारण कर लिया।
जून 2022 में संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने जल स्रोत विभाग के प्रमुख सचिव के साथ गिद्दड़पिंडी रेलवे पुल का दौरा कर उन्हें पुल के नीचे इकट्ठी हो चुकी 17 फीट ऊंची सिल्ट दिखाई थी। तब प्रमुख सचिव ने आश्वासन दिया था कि नवंबर 2022 के दौरान सिल्ट उठवा दी जाएगी। प्रमुख सचिव ने यह आश्वासन भी दिया कि हाईवे बनाने वाली ठेकेदार कंपनियों के साथ मिट्टी उठाने की बात हो चुकी है। इस वजह से मिट्टी उठाने में कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन काम शुरू नहीं हो पाया। 2023 के जनवरी महीने में एक बार फिर से सीचेवाल ने विभाग को चेताया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
11 जून को संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने विभाग के तमाम आला अधिकारियों, सांसद, दो विधायकों एवं जिला प्रशासन के साथ एक बार फिर से गिद्दड़पिंडी पुल का दौरा किया और हालात से अवगत कराया। 12 जून को चंडीगढ़ में भी बैठक हुई। बैठक में यह बात भी उठी कि मिट्टी की 11 करोड़ कीमत की है और उसे उठाने में लंबा समय लगेगा। संत सीचेवाल ने कहा था कि वर्षा आने से पहले मिट्टी उठवानी जरूरी है। इसके बाद 26 जून के बाद काम शुरू ही हुआ था कि बाढ़ आ गई।