चंडीगढ़
दिल्ली हिंसा पर आधी रात को सुनवाई करने वाले जस्टिस एस. मुरलीधर ने शुक्रवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जज के तौर पर शपथ ली। जस्टिस मुरलीधर दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे और उनका तबादला कर दिया गया था।
उन्हें तबादले के बारे में 17 फरवरी को जानकारी दी गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट के जज के तौर पर उन्होंने 27 फरवरी को आखिरी सुनवाई की। वीरवार को उन्हें विदाई दी गई और उन्हें अलविदा कहने के लिए इतने लोग पहुंचे कि वहां बैठने तक की जगह तक नहीं बची और लोग सीढ़ियों पर खड़े नजर आए।
दिल्ली हाईकोर्ट में खचाखच भरे हॉल में जस्टिस मुरलीधर ने सभी का आभार जताते हुए कहा कि न्याय को जीतना होगा तो जीत इसकी ही होगी। सच का साथ देते रहिए, इंसाफ होकर रहेगा। अदालतों को अविश्वसनीय रूप से लोकतांत्रिक होना चाहिए। कोर्ट को कमजोर लोगों के लिए गांधी और संवैधानिक नैतिकता के लिए आंबेडकर के सिद्धांत अनिवार्य तौर पर लागू करना चाहिए। यही मेरे भी सिद्धांत हैं।
उन्होंने कहा कि न्याय देने के लिए संवैधानिक मूल्यों पर बोलना ही नहीं आना चाहिए, बल्कि इसे आत्मसात भी करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा, मैं यह नहीं मानता कि जज किसी दैवीय शक्ति को धारण करते हैं। जज भी अपने फैसलों में भूल कर सकते हैं। उन्हें भी एक दिन मरना होता है। तटस्थ बने रहना और और निष्पक्ष होने के बीच फर्क होता है।
1984 में चेन्नई में वकालत की शुरुआत करने वाले जस्टिस मुरलीधर ने अपने विदाई भाषण में कहा कि वह वकील अचानक एक घटना से बन गए। उन्होंने बताया कि उनके एक वकील के बेटे से दोस्ती थी, जिसके साथ वह अक्सर क्रिकेट खेलते थे। वह जब दोस्त के घर जाते थे, तो वह उसके पिता की आलमारी में रखी किताबों को देखकर बेहद प्रभावित होते थे। इसके बाद जब मेरे दोस्त ने कहा कि वह कानून की पढ़ाई करने के लिए आवेदन देने जा रहा है तब मैंने भी तय किया कि मैं भी यही करूंगा और फिर मैंने एमएससी में दाखिला लेने का विचार छोड़ दिया।
जस्टिस मुरलीधर को दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने 29 मई 2006 को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाया था। इससे पहले वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और निर्वाचन आयोग के वकील भी रह चुके थे। बाद में वह दिसंबर, 2002 से विधि आयोग के अंशकालिक सदस्य भी रहे। इसी दौरान, 2003 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी भी की। डॉ. मुरलीधर की पत्नी उषा रामनाथन भी एक अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जो आधार योजना के खिलाफ आंदोलन में काफी सक्रिय थीं। बतौर वकील डॉ. मुरलीधर और उनकी पत्नी उषा रामनाथन ने भोपाल गैस त्रासदी में गैस पीड़ितों और नर्मदा बांध के विस्थापितों के पुनर्वास के लिए काफी काम किया था।
जस्टिस मुरलीधर ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड पर 2018 में रोक लगाने वाली पीठ के सदस्य के रूप में सरकार और व्यवस्था को खरी खरी सुनाई थी। 1986 के हाशिमपुरा नरसंहार के मामले में यूपी पीएसी के 16 कर्मियों और 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित एक मामले में कांग्रेस के पूर्व नेता सज्जन कुमार को सजा सुनाने में जस्टिस मुरलीधर जरा भी नहीं हिचके। वह हाईकोर्ट की उस जस्टिस एपी शाह की अगुवाई वाली उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने 2009 में दो वयस्कों में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर रखने की ऐतिहासिक व्यवस्था दी थी।