नई दिल्ली
दूरसंचार कंपनियों को समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) मामले में तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया समेत अन्य कंपनियों की पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उसे याचिकाओं पर विचार करने के लिए कोई ‘वाजिब वजह’ नहीं मिली। अब इन कंपनियों को 23 जनवरी तक 1.47 लाख करोड़ रुपये सरकार को चुकाने होंगे।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने पुनर्विचार याचिकाओं पर चैंबर में ही विचार किया, जबकि कंपनियों ने ओपन कोर्ट में सुनवाई का अनुरोध किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी याचिकाओं पर चैंबर में ही विचार करने की परंपरा पर कायम रहने का निर्णय किया।
सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्तूबर 2019 को अपने फैसले में कहा था कि दूरसंचार कंपनियों के एजीआर में उनके दूरसंचार सेवाओं से इतर राजस्व को शामिल किया जाना कानून के अनुसार ही है। 22 नवंबर को एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। इसमें फैसले पर पुनर्विचार करने और ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज को माफ करने की अपील की गई थी।
दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले साल नवंबर में संसद को बताया था कि दूरसंचार कंपनियों पर सरकार का 1.47 लाख करोड़ रुपये का बकाया है। साथ ही उन्होंने कहा था कि इस बकाये पर जुर्माने-ब्याज पर राहत का कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने कहा था कि दूरसंचार कंपनियों पर लाइसेंस शुल्क का 92,642 करोड़ रुपये और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क 55,054 करोड़ रुपये बकाया है।
इन कंपनियों पर इतना बकाया
भारती एयरटेल 21,682.13
वोडाफोन-आइडिया 19,823.71
रिलायंस कम्युनिकेशंस 16,456.47
बीएसएनएल 2,098.72
एमटीएनएल 2,537.48
(नोट : राशि करोड़ रुपये में, इसमें जुर्माना और ब्याज शामिल नहीं है)
एजीआर क्या है
दूरसंचार कंपनियों को एजीआर का 3 फीसदी स्पेक्ट्रूम फीस और 8 प्रतिशत लाइसेंस फीस के तौर पर सरकार को देना होता है। कंपनियां एजीआर की गणना दूरसंचार ट्रिब्यूनल के 2015 के फैसले के आधार पर करती थीं। ट्रिब्यूनल ने उस वक्त कहा था कि किराये, स्थायी संपत्ति की बिक्री से लाभ, डिविडेंड और ब्याज जैसे गैर प्रमुख स्रोतों से हासिल राजस्व को छोड़कर बाकी प्राप्तियां एजीआर में शामिल होंगी। जबकि दूरसंचार विभाग किराये, स्थायी संपत्ति की बिक्री से लाभ और कबाड़ की बिक्री से प्राप्त रकम को भी एजीआर में मानता है। इसी आधार पर वह कंपनियों से बकाया शुल्क की मांग कर रहा है।
एयरटेल ने फैसले पर निराशा जताते हुए कहा कि वह इस फैसले में सुधार के लिए याचिका दायर करने पर विचार कर रही है। कंपनी ने कहा कि हमारा मानना है कि एजीआर की परिभाषा पर लंबे समय से उठ रहे सवाल वैध एवं वास्तविक हैं। दूरसंचार उद्योग के सामने मुश्किल वित्तीय परिस्थितियां कायम हैं और इस फैसले से दूरसंचार क्षेत्र कारोबार को व्यावहारिक व्यवसाय के रूप से चलाने की संभावनाएं पूरी तरह से खत्म हो सकती हैं।
वोडाफोन-आइडिया के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि अगर कंपनी को सरकार मदद मुहैया नहीं कराती है तो यह बंद हो सकती है। उन्होंने साफ कहा था कि वह इस कंपनी में और ज्यादा पैसा निवेश नहीं करने वाले हैं क्योंकि इसका कोई मतलब नहीं है कि डूबते पैसे में और पैसा लगा दिया जाए।
इस एजीआर संबंधित देनदारी में बढ़ोतरी हो सकती थी। ब्रोकरेज फर्म ने कहा है कि कंपनी ने टेलीकॉम डिपार्टमेंट से मिले नोटिस के आधार पर एजीआर की मूल रकम के 11,100 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया है। वहीं, पिछले 2-3 साल का अनुमान कंपनी ने खुद लगाया है। ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस के अनुसार, वोडाफोन आइडिया की एजीआर संबंधित देनदारी 54,200 करोड़ रुपये रह सकती है। ऐसे में टेलीकॉम कंपनी को 10,100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त प्रोविजनिंग एजीआर के लिए करनी पड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को तीन महीने के अंदर इस रकम का भुगतान करने का आदेश दिया है।
रेटिंग एजेंसी फिच ने शुक्रवार को कहा कि टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम के भुगतान में दो साल की छूट मिलने और कंपनियों के टैरिफ बढ़ाने से भी टेलीकॉम सेक्टर को राहत मिलने के आसार नहीं हैं। एजेंसी ने कहा कि एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) मामले में सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले से रिलायंस जियो पर असर नहीं है, इसलिए उसका मार्केट शेयर लगातार बढ़ने की उम्मीद है। साथ ही कहा कि 2020 में टेलीकॉम सेक्टर के लिए उसका आउटलुक नेगेटिव है, क्योंकि बकाया एजीआर की रकम ज्यादा होने से वित्तीय जोखिम बढ़ गया है।
फिच का आकलन है कि कंपनियों द्वारा टैरिफ बढ़ाना और सरकार से स्पेक्ट्रम फीस को अदा करने में दो साल का वक्त मिलना टेलीकॉम सेक्टर के लिए सकारात्मक है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर कम करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। अब टेलीकॉम कंपनियां कोर्ट के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करने पर विचार कर रही हैं। इतना ही नहीं वे सरकार से दूसरी तरह की छूटों का लाभ लेने की भी कोशिश में हैं।