मुंबई ब्यूरो
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम पद की शपथ लेने के तकरीबन 48 घंटे बाद ही भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो ने एनसीपी नेता अजित पवार को बड़ी राहत दी है. एसीबी ने 70,000 करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले में अजित पवार को क्लीनचिट दी है. राज्य सरकार के सूत्रों की मानें तो जिन मामलों में अजित पवार को क्लीनचिट दी गई हैं इन मामलों से उनका संबंध नहीं है. सूत्रों की मानें तो बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद उन्हें क्लीन चिट दी गई है.
वहीं एसीबी के डीजी ने कहा है कि सिंचाई घोटाले के 9 केसों में अजित पवार की कोई भूमिका नहीं थी, इन केस को बंद करने के लिए तीन महीने पहले ही अनुशंसा कर दी थी. एसीबी के डीजी ने कहा है कि सिंचाई घोटाले से जुड़े मामले में लगभग 3000 अनियमितताओं की जांच की जा रही है जिनमें से 9 मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है.आपको बता दें महाराष्ट्र में हुए आश्चर्यजनक उलटफेर में शनिवार को भाजपा के देवेंद्र फडणवीस की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी हुई जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
यह घटनाक्रम ऐसे समय हुआ जब कुछ घंटे पहले ही कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सहमति बनने की घोषणा की थी.
बाद में शिवसेना ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने की महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की ‘‘मनमानी और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई/फैसले’’ के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर की.
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा आनन-फानन में राजभवन में सुबह आठ बजे आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में नाटकीय तरीके से फडणवीस और पवार को शपथ दिलाए जाने के बाद राकांपा में दरार दिखाई देने लगी. पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने भतीजे अजित पवार के कदम से दूरी बनाते हुए कहा कि फडणवीस का समर्थन करना उनका निजी फैसला है न कि पार्टी का.
बाद में एनसीपी ने अजित पवार को पार्टी विधायल दल के नेता पद से हटाते हुए कहा कि उनका कदम पार्टी की नीतियों के अनुरूप नहीं है.
इससे पहले महाराष्ट्र में हुए करीब 70 हजार करोड़ के कथित सिंचाई घोटाले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने नवंंबर 2018 में पूर्व उप मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार को जिम्मेदार ठहराया था. महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने बंबई उच्च न्यायालय को बताया था कि करोड़ों रुपये के कथित सिंचाई घोटाला मामले में उसकी जांच में राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार तथा अन्य सरकारी अधिकारियों की ओर से भारी चूक की बात सामने आई है. यह घोटाला करीब 70,000 करोड़ रुपए का है, जो कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शासन के दौरान अनेक सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी देने और उन्हें शुरू करने में कथित भ्रष्टाचार तथा अनियमितताओं से जुड़ा हुआ है.
अजित पवार के पास महाराष्ट्र में 1999 से 2014 के दौरान कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार में सिंचाई विभाग की जिम्मेदारी थी. एसीबी के महानिदेशक संजय बारवे ने एक स्वयंसेवी संस्था जनमंच की ओर से दाखिल याचिका के जवाब में हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के समक्ष एक हलफनामा दाखिल किया था.
एनजीओ ने याचिका में विदर्भ और कोंकण सिंचाई विभाग द्वारा शुरू की गई सिंचाई परियोजनाओं में कथित अनियमितता पर चिंता जताई थी. जवाबी हलफनामे में जल संसाधन विभाग के अंदर घोटाले को ‘साजिश का एक विचित्र मामला’ बताया गया जिसने सरकार से ही धोखाधड़ी की.
इसमें कहा गया था कि पवार के जल संसाधन विकास मंत्री रहने के दौरान विदर्भ और कोंकण सिंचाई विकास निगम की कई परियोजनाओं में देरी हुई. इससे लागत में वृद्धि हुई और सिंचाई के अनुमानित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका. हलफनामे में कहा गया था कि पूछताछ के दौरान शरद पवार ने दावा किया था कि उन्होंने सारे निर्णय सचिव स्तरीय अधिकारियों के सुझाव पर लिए थे और इसमें से भी अधिकतर निर्णय जमीनी स्तर पर लिए गए थे. एसीबी ने तब, अनियमितता की जांच आगे बढ़ाने और कानून के मुताबिक आपराधिक कार्रवाई करने के लिए और वक्त मांगा था.