50 लाख रुपयों की लागत से बनवाये मोबाइल टॉयलेट खड़े-खड़े हो रहे कबाड़

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मोबाइल टॉयलेट के दरवाजे और सामान भी हो गया गायब, क्या ऐसे बनेगा स्वछता में नंबर 1 बठिंडा हमारा 

बठिंडा, कपिल शर्मा

कुछ वर्ष पूर्व लगभग 50 लाख रुपयों की लागत से 7 के करीब मोबाइल टॉयलेटस बनवाये गये थे और उनको बठिंडा तक लेकर आने पर ही उनके ट्रांसपोटेशन पर लाखों रूपये खर्च किये गये थे। बठिंडा के थर्मल प्लांट के नजदीक रेलवे क्रासिंग के पास पुल के नीचे एक मोबाइल टॉयलेट पिछले काफी समय से खड़ी है। सरकार द्वारा लोगों के द्वारा दिये गये फंड्स में लाखों रूपये खर्च कर पब्लिक की सुविधा के लिये मोबाइल टॉयलेटस बनवाये गये थे ताकि लोग शौच आदि करने खुले में जाने की जगह इन मोबाइल टॉयलेटस का इस्तेमाल करेंगें और हमारा बठिंडा गंदगी फैलने से बच जायेगा, मगर अब इस मोबाइल टॉयलेट की हालत बेहद ख़राब है और ये मोबाइल टॉयलेट अब देखने में कबाड़ जैसी लगती है। नगर निगम बठिंडा की तरफ से लगभग 50 लाख रुपयों की लागत से बनवाये मोबाइल टॉयलेट के रख-रखाव और मेंटेनेंस के लिये समय-समय पर कांट्रेक्टरस के साथ कॉन्ट्रैक्टस भी किये गये थे जिसके लगभग 20 से 30 हज़ार रूपये प्रति मोबाइल टॉयलेट प्रति महीना भी दिया जाता रहा है। इन मोबाइल टॉयलेटस की देख-रेख और मेंटेंनेस पर लाखों रूपये प्रति महीना खर्च करने के बाद भी इतने महंगे बनवाये मोबाइल टॉयलेट देखने में कबाड़ जैसी लगती है। नगर निगम बठिंडा की तरफ से लगभग 50 लाख रुपयों की लागत से बनवाये मोबाइल टॉयलेट कबाड़ बनते जा रहे है सिर्फ नगर निगम बठिंडा के सम्बंधित अफसरों, अधिकारीयों आदि की अनदेखी के कारण। जो ये थर्मल प्लांट के नजदीक पुल के नीचे मोबाइल टॉयलेट खड़ी है इस मोबाइल टॉयलेट के कई दरवाजे भी गायब हो चुके हैं और पानी वाली टंकी भी मोबाइल टॉयलेट पर से गायब है। इस मोबाइल टॉयलेट के टायर खड़ी – खड़ी के ही फिस चुके हैं। इसका फर्श और फर्श पर लगी चादरें आदि भी गायब हो चुकी हैं फर्श की जगह लोहे के गाडर ही दिखाई दे रहे हैं। टूटियां और बहुत सारा सामान उस मोबाइल टॉयलेट में से गायब हो चुका है। आशंका ये भी है कि शायद ये सारा सामान चोरी हो चुका है। जो कुछ दरवाजे, सामान आदि बचा है उनमें भी बहुत ज्यादा जंग लगी हुई है और वो गल चुके हैं।
स्वच्छ भारत अभियान के तहत नगर निगम बठिंडा ने कुछ साल पहले दूसरे राज्य से लगभग 50 लाख रुपये खर्च कर 7 के करीब मोबाइल टॉयलेट्स बनवाये थे। इन मोबाइल टॉयलेट्स की हालत शुरू के 2-3 सालों में ही बहुत ख़राब हो गयी थी। ठेकेदारों और निगम के अधिकारीयों द्वारा ध्यान ना देने के कारण कई मोबाइल टॉयलेट्स गल चुके थे और कई मोबाइल टॉयलेट्स तो कबाड़ का ही रूप धारण करते जा रहे थे। इस मोबाइल टॉयलेट्स पर कोई भी जेंट्स कर्मचारी और महिला कर्मचारी मौजूद नहीं है और नाहीं कोई बिजली का कनेक्शन है, कोई पानी वाली टंकी या पानी वाली मोटर आदि भी नहीं है, निगम के अफसर, अधिकारी लाखों रूपये खर्च करके भी मोबाइल टॉयलेट को चालू हालत में नहीं रख सकते वो कबाड़ बनती जा रही है तो फिर पब्लिक के लाखों रूपये खर्च करने का क्या फायदा? नगर निगम बठिंडा के सम्बंधित अफसरों, अधिकारीयों को चाहिये कि लाखों रुपयों से ख़रीदे गये मोबाइल टॉयलेट्स की अच्छे से देख-भाल हो और अगर कोई भी किसी किस्म की मुरम्मत की जरुरत पड़ती है तो समय-समय पर मोबाइल टॉयलेट्स की मुरम्मत करवा कर इन सभी मोबाइल टॉयलेट्स को चालू और ठीक हालात में रखे नाकि कबाड़ बनने के लिये छोड़ दी जाये इतनी महंगी आई मोबाइल टॉयलेटस। नगर निगम बठिंडा और सम्बंधित ठेकेदारों की लापरवाही के कारण लाखों रुपयों के मोबाइल टॉयलेट्स की हालात इतनी ख़राब है इसके लिये निगम के सभी सम्बंधित अफसरों, अधियकारियों और सम्बंधित ठेकेदारों आदि पर बनती सख्त से सख्त कारवाई करने की जरुरत है। हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा चलाये गये स्वच्छ भारत अभियान में क्या इस तरह से स्वछता में नंबर 1 बठिंडा बनेगा ? मोबाइल टॉयलेट् की हालत इतनी खस्ता क्यों है और इसके लिये कौन-कौन जुम्मेवार है ये एक बहुत बड़ा सवाल है ।

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