शक्ति जिंदल,गिद्दड़बाहा । जिनको अपने आले दुआले व वातार्वण की फिक्र होती है,वह समझते है कि अगर वे इसको गंदला करेगे तो सबसे पहले उसका नजीता उनको ही भुगतना पडेगा। जिससे वह बीमारियों का शिकार होगें। इसी कारण वह हमेशा अपने जलवायु की संभाल के प्रयास करते रहते है। इसी सिंधात पर चलते हुए गांव छतेआना का किसान बलजिद्र सिंह पिछले कई सालों से पराली को आग नही लगाकर खेती कर रहा है।
अपनी सफलता की कहानी सांझा करते हुए किसान बलजिद्र सिंह ने बताया कि पिछले साल से पहला उसको पराली संभालने में खासी दि1कत आती थी। जिसके चलते पिछले साल उसकी ओर से अपने जैसे दस किसानों का समुह बनाकर खेती उजार सरकार की स4सीडी स्कीम तहत खरीदे। जिस पर उनको स4सीडी भी मिली। जिसके बाद इन उजारो के साथ बलजिद्र सिंह व उसके साथ के किसानों ने पराली का निपटारा कर लिया। किसान बलजिद्र सिंह अनुसार उसने पिछले साल पच्चीस एकड़ पराली को बिना जलाए गेंहु की बिजाई की। जिससे बाद भी उसकी भरपुर फसल हुई। जबकि उसकी धान की फसल भी खासी अच्छी रही। जबकि उसकी ओर से खरीदे गए उजार अन्य किसानों को भी किराए पर दिए। जबकि पराली ना जलाकर उसकी जमीन की उपजाऊ श1ित भी बढ़ी। जिससे खाद की खपत भी कम हुई। उसके अनुसार वातावर्ण को नुकसान पहुचाकर किसान खुद ही बीमारियां पैदा कर रहे है। वही खेतीबाड़ी अधिकारी गुरप्रीत सिंह ने बताया कि पराली को जलाने से सभी जरूरी मित्र कीट व जीव जंतु नष्ट हो जाते है। जबकि पराली का धुंआ खतरनाक भी होता है।