बठिंडा की अग्रवाल कालोनी में बने श्री चैतन्य गौड़ीय मठ में चल रहे संत समेललन के आठवें दिन अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ में उड़ीसा से पधारे श्री दामोदर प्रभु जी ने कहा कि यद्यपि सारे जीव भगवान के सेवक है। भगवान की सेवा करना उनका मुख्य कर्तव्य है। परंतु अनेक जन्मों से ये जीव भगवान के विमुख रहते आये है। जिसका परिणाम ये है कि जीव अपने ही कारण को, अपने ही नित्य पिता को भुला बैठे है। जीव को पुनः भगवान का स्मरण करवाने व उन्हें भगवान की सेवा में लगवाने के लिए युग युग मे भगवान आते है व बीच बीच में अपने पार्षदों को वैकुंठ से इस धरातल पर भेजते है।
हमारे श्री चैतन्य महाप्रभु जी के पार्षदों ने संसार के लोगों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के लिए भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व मे आध्यात्मिक शिक्षा केंद्र खोले है, जिन्हें संस्कृत में “मठ” कहते है। दूसरे शब्दों में इसे पारमार्थिक छात्रावास भी कहते है।
सभा के दूसरे वक्त श्री राधा गोविंद ब्रह्मचारी जी ने कहा कि मंदिर में भगवान की पूजा आराधना होती है। जबकि मठ में आध्यात्मिक शिक्षक अपने शिष्यों को भगवान की आराधना की शिक्षा प्रदान करते है। प्रभु जी ने कहा भगवान का अवतरण जिस प्रकार से इस धरातल पर होता है। इसी प्रकार भगवान के धाम का भी इस जगत पर अवतरण होता है। यही कारण है कि वृंदावन, अयोध्या अथवा श्री जगन्नाथ पुरी जैसे धामों की गिनती दिव्य स्थानों में होती है। इन स्थानों को आध्यात्मिक लोग संसार का हिस्सा नहीं मानते। जैसे वृन्दावन धाम का अवतरण वैकुंठ से हुआ उसी प्रकार श्री चैतन्य गौड़ीय मठ भी भारत का या संसार का हिस्सा नहीं। ये भी वैकुंठ से धाम का अवतरण है।