नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार की उस अपील पर सुनवाई की, जिसमें उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 6 मार्च के फैसले को चुनौती दी है। लखनऊ में सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करते हुए कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसके पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है। कोर्ट ने कहा कि हम आपकी बैचेनी समझ सकते हैं। तोड़फोड़ करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन क्या आप दो कदम आगे जाकर ऐसे कदम उठा सकते हैं? क्या आप चौराहे पर किसी की फोटो लगा सकते हैं? कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद याचिका बड़ी बेंच को सौंप दी है। अब तीन जजों की बेंच याचिका पर सुनवाई करेगी।
कोर्ट में सॉलसिटर जनरल तुषार मेहता ने यूपी सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि पोस्टर हटा लेना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन विषय बड़ा है। निजता के कई आयाम होते हैं। अब निजता के अधिकार की सीमाएं हैं। निजी जीवन में कोई व्यक्ति कुछ भी कर सकता है, लेकिन सर्वजनिक रूप से इसकी मंजुरी नहीं। अगर आप दंगों में खुलेआम बंदूक लहरा रहे हैं, तो आप निजता का दावा नहीं कर सकते हैं। इस मामले में 57 लोग आरोपी हैं। उनसे वसूली की जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान एस आर दारापुरी के वकील सिंघवी ने यूपी सरकार से पूछा कि किस कानून के तहत मेरे कलाइंट की फोटो पब्लिश की गई। पोस्टर जान बूझकर हिंसा भड़काने के लिए लगाया गया है। जिससे लोग इनके खिलाफ हिंसक व्यवहार करें। सुप्रीम कोर्ट को इसपर विचार करने की जरुरत है। जिसके बाद सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका बड़ी बेंच को सौंप दी है। अब तीन जजों की बेंच याचिका पर सुनवाई करेगी।
उच्च न्यायालय ने लखनऊ में लगे पोस्टरों से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों के नाम, पते और फोटो हटाये जाने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है, जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन खंडपीठ गुुरुवार को करेगी। राज्य सरकार ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर हिंसा करने का आरोप लगाया गया था तथा प्रदर्शनकारियों के नाम, पते और फोटो वाले बैनर एवं पोस्टर लगाये थे।
इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था और गत रविवार को विशेष सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को उक्त बैनर हटाने के निर्देश दिए थे। उच्च न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त को 16 मार्च तक आदेश पर अमल संबंधी रिपोर्ट रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष पेश करने का भी निर्देश दिया था।