धीरज गर्ग / नीरज मंगला, बठिडा :
सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक की लापरवाही ने दो परिवारों को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जिसके आगे उन्हें रास्ता नहीं दिख रहा। कर्मचारियों ने थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा दिया। अब दो बच्चे एचआईवी संक्रमित हो गए हैं। इनमें से एक बच्चा 9 साल का है। वह जब पांच महीने का था, तब सिर से पिता का साया उठ गया था। वह पांच साल से थैलेसीमिया पीड़ित है। ब्लड बैंक के स्टाफ की लापरवाही के कारण अब उसे एचआईवी की जंग भी लड़नी पड़ेगी।
दादा ने कहा- बच्चे को मौत के मुंह में डालने वालों को मिले कड़ी सजा
यह बच्चा परिवार का इकलौता चिराग है। मां व दादा दिहाड़ी करके घर चलाते हैं। दादा ने कहा कि उनके बच्चे को मौत के मुंह में डालने वालों पर कार्रवाई भी सख्त से सख्त होनी चाहिए। वह बुधवार को बठिंडा के सिविल अस्पताल में बच्चे को खून चढ़वाने आया था। हड़ताल के कारण उसे परेशान होना पड़ा।
मेरे पास पैसे नहीं, सरकार करे मदद
बुजुर्ग का कहना है कि 9 साल पहले उनके बेटे की करंट लगने के कारण मौत हो गई थी। इसके बाद उसकी बेटी पोती को अपने पास ले गई। थैलेसीमिया पीड़ित लड़का उनके पास रह गया। पहले वे उसे गंगानगर से दवा दिला रहे थे। उन्हें डर था कि इसका जिगर बढ़ रहा है। बाद में मोगा से इलाज करवाया तो पता लगा कि थैलेसीमिया है। इसके बाद बठिंडा के अस्पताल इलाज शुरू किया। यहां पर पांच साल से उसको खून चढ़ाया जा रहा था। संक्रमित खून चढ़ाने के बाद वह एचआईवी पाजिटिव आया है। तीन माह पहले करवाए गए टेस्ट में सारा कुछ ठीक था। उनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वह बच्चे का इलाज करवा सकें। अब तो सरकार को चाहिए कि वह बच्चे के इलाज का प्रबंध करे।
दूसरे बच्चे के परिवार ने कहा, अब सिर्फ इंसाफ की उम्मीद
एक और बच्चा एचआईवी पीड़ित मिला है। उसके परिवार वाले खून लेने के लिए आए थे। इनको भी ब्लड बैंक वालों ने काफी परेशान किया। इनका बच्चा 7 नवंबर को करवाए गए टेस्ट में एचआईवी पाजिटिव आया था। पिता का कहना है कि वह खेतीबाड़ी करके घर चलाते हैं। उनके पास बच्चे का इलाज करवाने के ज्यादा साधन नहीं हैं। बच्चे की उम्र अभी सिर्फ 11 साल की है। उसे 9 साल से खून चढ़ाया जा रहा है। उनकी एक छोटी बेटी है। हालांकि दोनों बच्चे अभी पढ़ाई कर रहे हैं, जिनको किसी भी बात की कोई समझ भी नहीं है। अब तो उन्हें सिर्फ इंसाफ की ही उम्मीद है।