बेसहारा पशुओं की बदौलत हुए सडक़ हादसों की जानकारी होने और करोड़ों का जमा हो चुका काओ-सेस के बावजूद सरकार की कार्यप्रणाली नपुंस्कीय

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नीरज मंगला बरनाला ।
राज्यभर में एक लाख से ज्यादा बेसहारा पशु सडक़ों पर हैं, जिनके प्रबंधन के लिए हालांकि सरकार के पास काओ सेस के नाम पर एकत्रित किया हुआ करोड़ों रुपया जमा पड़ा है, लेकिन कोई प्रबंध नहीं किया जा रहा। जिसके चलते आए दिन सडक़ दुर्घटनाएं हो रही हैं। पिछलें वर्षों की बात करें तो अब तक हजारों वाहन व हजारों लोग बेसहारा पशुओं की बदौलत सडक़ हादसों के शिकार हो चुके हैं। दुर्घटनाओं और संबंधित विभागों द्वारा बरती जा रही लापरवाही की जानकारी होने के बावजूद सरकार की कार्यप्रणाली नपुंस्कीय रही है। प्रश्न यह है कि जब किसी भी सडक़ या किसी भी शहर के अंदर गोधन था ही नहीं तो वह गोधन बेसहारा होकर कैसे दाखिल हो गया।

गांवों से निकल सडक़ों पर कैसे पहुंचा बेसहारा गोधन:
खासकर दुग्धारू व मित्र पशुओं की जिम्मेदारी डेयरी फार्मों के मालिकों, ग्रामीण पशु पालकों और पशु मंडियों प्रबंधकों की होती है। शहरों में तो कहीं भी पशुधन नहीं था, तो सडक़ों व शहरों में पशुधन कहां से आया। माना जा रहा है कि ऐसे लोगों के संबंध राजनीतिक पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं से हैं और प्रशास्निक अधिकारियों द्वारा शिकंजा नहीं कसने से गोधन सडक़ों पर आ रहा है। बता दें कि पंजाब में गठबंधन की सरकार के वक्त पूर्व एक मंत्री ने इस मामले के बारे में जांच भी की थी, जिसमें खुल्लासा हुआ था कि निचोड़े गए पशुओं को बेसहारा कर रसूखदार व्यक्तियों के इशारे पर सडक़ों पर छोड़ा जा रहा है।

प्रकरण के यह बताए जा रहे कारण :-
1. गुजरे 20 साल की बात करें तो कुछ मुनाफाखोर तत्वों ने तत्कालीन मंत्रियों से सांठ-गांठ कर विदेशों से सीमन मंगवाया। देसी गाय को दर किनार करना शुरु कर दिया। माहिर बताते हैं अमरीकन गाय यदि वह एक बार दूध देना बंद कर दे तो महंगे से महंगा ईलाज करवाने के बावजूद दोबारा दूध देने योग्य नहीं होती। जिसके चलते पशुपालकों ने देसी गायों को डंडे मारकर रात के अंधेरे का फायदा उठा गांवों से बाहर सडक़ों पर छोडऩा शुरु कर दिया।
2. प्रदेशभर में जगह-जगह हर महीने पशू मंडियां लगती आ रही हैं। जहां पशुओं को बेचने की आड़ में पशुपालक गोधन को इधर-उधर सडक़ों पर लावारिस व बेसहारा कर छोड़ जाते हैं।
3. तीसरा कारण यह बताया जा रहा है कि अधिकांश गांवों के खेतों के मालिकों ने कुछ खेत रक्षकों को तैनात कर रखा है, जो पशुओं से होते उजाड़े से खेतों को बचाने के लिए रखे गए हैं। वह रात के समय अपने गांवों की दूध देने से खाली हो चुकी गउओं और गोधन को राष्ट्रीय राज मार्ग पर छोड़ते हुए दूसरे गांवों की ओर धकेल देते हैं। जिसके बदले उन्हें मोटी रकमें मिलती हैं। सडक़ों पर छोड़े जाते बेसहारा पशू दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।

1 लाख से ज्यादा गोधन सडक़ों पर :-
पंजाब प्रदेश में 450 गोशालाएं हैं, जो सभी समाजसेवी एवं धार्मिक संगठनों के सहयोग से निर्माणित हैं। जबकि सरकार मात्र 17 कैटल पाउंड का ही निर्माण कर सकी है। प्राप्त आंकड़े के अनुसार उक्त गोशालाओं में 3 लाख गोधन है। जबकि सकार की लापरवाही से 1 लाख से ज्यादा गोधन सडक़ों पर हैं। गोशाला प्रबंधकों के अनुसार पशुओं की संभाल, डाक्टरी ईलाज से लेकर खाने के लिए चारा एवं इमारत के प्रबंधन समेत प्रति पशु एक दिन का खर्च औस्तन 300 रुपए यानि (प्रतिमहीना 11 हजार रुपए) बनता है। भारतीय गाय 6 से 7 किलो चारा रोज खाती है और अमरीकन गाय 12 से 13 किलो प्रति दिन, जबकि सांढोंं की खुराक तकरीबन 10 किलो प्रति दिन है। बताया जा रहा है कि शिअद सरकार द्वारा हर जिला में कैटल पाऊंड खोले थे, जिसकी जिम्मेवारी सरकारी प्रशास्निक अधिकारियों को सौंपी गई थी। लेकिन हकीकत यह है कि आज तक कैटल पाउंडों में सांढों को पूरी तरह से लेजाया ही नहीं गया। यहां यह भी बताते चलें कि प्रदेशभर में केवल मानसा जिले के अंदर निर्माणित सरकारी कैटल पाऊंड का प्रबंध नतीजा सर्वोतम है।

सरकार के पास लगातार जमा हो रहा काओ-सेस:
राज्यभर की गोशालाओं में शामिल गोधन की रक्षा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा करीब दस वर्षों से विभिन्न 11 श्रोतों के जरिए काओ सेस वसूला जा रहा है। गोशालाओं के प्रबंधकों के अनुसार वसूले जा रहे काओ-सेस में बिजली के प्रति युनिट से 2 रुपए, अंगेजी शराब की हर बोतल से 10 रुपए व देसी शराब की बोतल से 5 रुपए, मैरिज पैलेसों में होते छोटे-बड़े विवाह समागम से 1000-1500 रुपए शामिल हैं। इनके अलावा पैट्रोल के प्रति लीटर, दोपहिया चार पहिया वाहनों के जरिए भी काओ के नाम पर सरकार मोटी उगराही कर चुकी है। सरकार के पास करोड़ों का काओ सेस जमा हो चुका है, जबकि वसूली अभी भी जारी है।

आखिर तीन साल में फिर से आ गया बेसहारा गोधन:-
बता दें कि जून 2017 के दौरान बरनाला के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर घनश्याम थोरी ने पूरे जिला को सडक़ों पर घूमते बेसहारा गोधन व पशुओं से निजात दिलाने के चलते 95 फीसदी (850 बेसहारा) पशुओं को काबू करवा जिला के गांव मनाल स्थित 13 एकड़ क्षेत्रफल में सरकार द्वारा निर्माणित कैटल पाऊंड में भेज दिया गया था। जिलाभर की सडक़ें बेसहारा पशुओं से साफ हो गई थी। लेकिन जैसे ही उनका तबादला हो गया, उसके बाद गुजरे तीन साल के अंदर जिला में बेसहारा पशुओं की संख्या एक हजार का आंकड़ा भी पार कर गई।

हमेशा समाजसेवियों को ही आना पड़ा आगे:
केवल पंजाब प्रदेश ही नहीं भारतवर्ष में जहां कहीं गोशालाएं हैं, वहां समाजसेवी लोग किसी भी तरह मदद करने को पीछे नहीं रहते। पंजाब के जिला बरनाला की एक उदाहरण की बात करें तो गांव मनाल स्थित सरकारी गौशाला में सरकारें/विधायक/सांसद पूरे शैड्ड तक नहीं बना सकी थी। जिसकी जरूरत को देखते हुए बरनाला के प्रसिद्ध समाजसेवी व कालोनाईजर बरनाला बिल्डर्ज एंड डवेल्पर्स प्रा. लिम. (आस्था एन्कलेव) के मैनेजिंग डायरेक्टर अमरनाथ बांसल के सुपुत्र दीपक सोनी ने मनाल कैटल पाऊंड में नया शैड्ड निर्माण करने के लिए 4 लाख रुपए की राषी भेंट की थी।

समाजसेवी संस्था ने डीजीपी को लिखा पत्र:
हालांकि पशुओं की संख्या एवं उनके जन्म-मौत से लेकर हर तरह का रिकार्ड रखने की जिम्मेदारी सिविल प्रशासन, पशु-पालन विभाग, नगर परिषद, नगर पंचायतों की है। जबकि उनकी ओर से बरती जा रही लापरवाही का फायदा उठा पशुपालकों एवं उनके खेत रखवालों के हौंसले बुलंद हैं। जिसको देखते प्रदेश के एक समाजसेवी संगठन ने पंजाब पुलिस के निदेशक दिनकर गुप्ता को पत्र लिखकर शिकंजा कसने की मांग की है। पत्र की प्रति मुख्यमंत्री के नाम भी भेजी गई है। पत्र में साफ तौर पर लिखा है कि लातों के भूत बातों से मानने वाले नहीं। डंडे के बिना कोई हल नहीं हो सकता।

पुलिस की पहल हादसे रोकने का शार्टकट :
जिला में सडक़ दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अब जिला पुलिस ने पहल की है। स्थायी समाधान से पहले जहां पुलिस ने राहगीरों, वाहन चालकों को रेडियम व रिफलेक्टरयुक्त जैकेटें बांटनी शुरु की हैं वहीं सडक़ों पर घूम रहे बेसहारा पशुधन के सींहों और पूंछ पर रेडीयम बांधने तथा गले में रिफलेक्टरयुक्त पट्टे लटकाने की तैयारी कर रही है। इस अभियान को अमली जामा पहनाने के लिए जिला पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रदेश पुलिस निदेशक दिनकर गुप्ता के दिशा-निर्देशों तथा जिला पुलिस मुखी संदीप गोयल के नेतृत्व में दो दिन पहले जिला की गोशालाओं के प्रतिनिधियों से बैठक भी की है। उम्मीद लगाई जा रही है कि पुलिस द्वारा की जा रही पहलकदमी गोधन को सडक़ों पर लावारिस धकेलने वाले दोषियों पर शिकंजा कसने में कारगार सिद्ध होगी।

लॉकडाऊन के हालातों में भी सरकार रही लापरवाह: अनिल।
गोरक्षा रक्षा दल रजि. पंजाब प्रधान अनिल बांसल नाना का कहना है कि गोशालाओं का प्रबंध करना सरकार की अहम जिम्मेदारी है। लेकिन आज तक के इतिहास में किसी सरकार ने किसी मंत्री ने सामाजिक व धार्मिक संगठनों के सहयोग से चल रही गोशालाओं को सांसदीय फंड से ग्रांट तो क्या देनी थी, चारा व दवा तक मुहैया नहीं करवाई। बड़ी कोशिशों के बाद बादल सरकार से बिजली का बिल माफ करवाया था, जैसे ही कांग्रेस सत्ता में आयी उसने फिर से बिजली बिल की उगराही करना शुरु कर दिया। हालांकि गांवों में हजारों एकड़ सरकारी जमीनें हैं, जिन्हें किसी पुण्य कार्य के लिए आरक्षित रखना था, उन पर नाजायज कब्जे तो हो रहे हैं लेकिन गोशाला के नाम पर सरकारों के पास जमीन की कमी है। जिस दिन गाोशाला प्रबंधक कमेटियों ने इकजुट होकर सभी गोशालाएं खाली करने का फैसला ले लिया उस दिन सरकार को स्थिती से निपटना मुश्किल हो जाएगा। सरकार के लिए इससे बड़ी शर्मनाक बात क्या होगी कि कोविड-19 के कारण देशभर में लगे लाकडाउन में गोशालाओं के गोधन के लिए हरे चारे तक की व्यवस्था नहीं की। सडक़ों पर मरे पशुओं को उठाने और दफनाने के लिए भी प्रशासन व सरकार ने कोई प्रबंध नहीं किया।

उच्च-न्यायालय में केस है पेंडिंग: गुप्ता।
पंजाब गोशाला महासंघ के चेयरमैन रमेश गुप्ता बताते हैं कि सरकार द्वारा उगराहे जा चुके काओ-सेस और सरकार द्वारा गोशालाओं को किसी किस्म की राहत नहीं पहुंचाने और माफ हुए बिजली बिल फिर से उगराहने को लेकर गोशाला संगठनों की ओर से पंजाब-हरियाणा उच्च-न्यायालय चंडीगढ़ में केस भी दायर किया हुआ है, जिसकी पैरवी एडवोकेट राजन एवं एडवोकेट रविंदर गोयल कर रहे हैं। केस पेंडिंग है तथा नतीजे की इंतजारी है। इसी विषय को लेकर देश के प्रधानमंत्री से लेकर संबंधित मंत्रालय एवं विभागों को पत्राचार हो चुका है, लेकिन किसी की ओर से मूल कारणों पर काम करने की पहल नहीं हुई।

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