नई दिल्ली । 152 साल पुराने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार 12 सितंबर को सुनवाई हुई। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया।

हालांकि केंद्र सरकार ने नए बिल का हवाला देकर कोर्ट से सुनवाई टालने का अनुरोध किया। इस पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि भले ही नया विधेयक कानून बन जाए, लेकिन नए कानून का पिछले मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह सभी डॉक्यूमेंट्स CJI के सामने रखे, ताकि बेंच बनाने के लिए फैसला किया जा सके।

भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने बेंच को नए विधेयक (भारतीय न्याय संहिता) के बारे में बताया, जिसे IPC की जगह लाने के लिए लोकसभा में पेश किया गया है। AG ने कहा कि नया विधेयक, जिसमें राजद्रोह का अपराध शामिल नहीं है, संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया है। इसलिए बेंच से अपील की कि फैसला होने तक सुनवाई रोक दी जाए।

हालांकि याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने तुरंत हुए कहा कि नए विधेयक में भी ऐसा ही प्रावधान है, जो बहुत खराब है। दातार भी इस दलील से सहमत दिखे, उन्होंने कहा- नए बिल में भी राजद्रोह मौजूद है, बस उन्होंने एक नया लेबल दे दिया है। सिब्बल ने यह भी अनुरोध किया कि मामले को सीधे 7-न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाए।

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