धीरज गर्ग चंडीगढ़
पोत्सव के शुभागमन में महज पांच दिन शेष हैं। निसंदेह, यह पर्व सुख, समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। धन और वैभव की कामना पूर्ति का दिवस भी, लेकिन वर्तमान में प्रदूषण रूपी जहर वायुमंडल में फैलाना घातक साबित हो सकता है। दीपावली पर करोड़ों नहीं, अरबों रुपयों के पटाखे फूंककर एक माह तक न सिर्फ लोगों का दम घुटेगा, बल्कि यह धुआं कोरोना वायरस को भी सांसें देकर उसे फिर से बढ़ा सकता है। यह अजीब तो लगेगा, पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने संभावना जताई है कि पटाखों से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण कोरोना को सांस दे सकता है। इसलिए दीपावली पर दीप जलाएं, पर्यावरण नहीं। पंजाब सहित अमृतसर में धुएं की अजीबो-गरीब चादर दिख रही है। यह पराली जलाने की वजह से है, लेकिन यदि दीपावली पर पटाखों के कर्णभेदी शोर से प्रदूषण पैदा हुआ तो इस चादर की परत और गहरी हो जाएगी। विशेषज्ञों की मानें तो प्रतिवर्ष दीपावली के एक माह तक धुएं की यह चादर बरकरार रहती है। इससे टीबी, अस्थमा, सीओपीडी इत्यादि रोगों के मरीजों की संख्या में अपत्याशित ढंग से वृद्धि होती है।
टीबी अस्पताल के चेस्ट एंड टीबी रोग विशेषज्ञ डा. एनसी काजल का कहना है कि पटाखों से निकलने वाले धुएं में एक्यूआई वैसे ही 200 के आसपास रहता है। लाकडाडन के दिनों में इसमें अपेक्षित सुधार हुआ। यह 50 से 60 के बीच पहुंच गया था। वाहनों व फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषण एक्यूआइ में सुधार होने ही नहीं देता। दीपावली की रात पटाखों से निकलने वाले धुएं से यह प्रदूषण 300 तक चला जाता है। इसलिए इस बार ग्रीन पटाखों से दीपावली मनाकर पर्यावरण को बचाएं, कोरोना को सांसें न दें।