द अपील न्यूज ब्यूरो, नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में जेल में बंद पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम की जमानत याचिका पर शुक्रवार को सीबीआई को नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो की ओर से पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता को इस याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश देने के साथ ही चिदंबरम की याचिका 15 अक्टूबर के लिये सूचीबद्ध कर दी।
चिदंबरम ने अपनी याचिका में उन्हें जमानत देने से इंकार करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 30 सितंबर के फैसले को चुनौती दी है। संप्रग सरकार में 2004 से 2014 के दौरान वित्त और गृह मंत्री रहे पी चिदंबरम इस समय न्यायिक हिरासत में हैं। सीबीआई ने उन्हें 21 अगस्त को गिरफ्तार किया था। सीबीआई ने आईएनएक्स मीडिया समूह को 2007 में दूसरे देशों से 305 करोड़ रुपये का कोष प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (एफआईपीबी) से मंजूरी दिलाने में अनियमितता बरतने के आरोप 15 मई 2017 को मामला दर्ज किया था। जिस समय यह मंजूरी दी गई उस वक्त चिदंबरम वित्तमंत्री थे। इसके आधार पर उसी साल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने धनशोधन का मामला दर्ज किया था।
चिदंबरम की अपील पर सुनवाई शुरू करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उच्च न्यायलाय के 30 सितंबर के फैसले का जिक्र करते हुये कहा कि अदालत ने जमानत देने से इंकार करते समय तीन पहलुओं – भागने का खतरा, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ और गवाहों को प्रभावित करना- पर गौर किया था। सिब्बल ने कहा कि उनके भागने की संभावना और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ के पहलू पर उच्च न्यायालय ने चिदंबरम के पक्ष में व्यवस्था दी जबकि गवाहों को प्रभावित करने संबंधी तीसरे बिन्दु पर उसका निर्णय कांग्रेस नेता के खिलाफ था। पीठ ने चिदंबरम की ओर से पेश सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी से सवाल किया, च्च्यह तो सीबीआई के मामले के बारे में है। प्रवर्तन निदेशालय के मामले का क्या हुआ। इसके जवाब मे सिब्बल ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय ने धन शोधन के मामले में चिदंबरम को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया है। सिब्बल और सिंघवी ने कहा कि चिदंबरम की अपील पर बहस करने के लिये उन्हें 30 मिनट का वक्त चाहिए। पीठ ने इस पर सालिसीटर जनरल को सीबीआई की ओर से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को 15 अक्टूबर के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
चिदंबरम ने अपनी याचिका में कहा है कि सीबीआई की ओर से मुहैया कराए गए सीलबंद दस्तावेज के आधार पर उच्च न्यायालय ने फैसला लिया लेकिन वे दस्तावेज न तो रिकॉर्ड के हिस्सा थे और न ही उन्हें दिखाया गया। यही नहीं, उन्हें इसपर अपना पक्ष रखने का भी मौका नहीं दिया गया। याचिका में दावा किया गया है कि उच्च न्यायालय ने गवाहों को प्रभावित करने की संभावना के बारे में बिना किसी पुख्ता दस्तावेज और असत्यापित आरोपों के आधार पर जमानत याचिका खारिज कर गलती की। चिदंबरम ने न्यायालय के निष्कर्ष को भी नकार दिया जिसके मुताबिक आईएनएक्स के पूर्व प्रवर्तक इंद्राणी और पीटर मुखर्जी ने उनसे मुलाकात की और उन्हें गलत तरीके से लाभ पहुंचाया गया। पूर्व वित्त मंत्री ने आगे कहा कि इस मामले को आर्थिक अपराध से जोड़ा नहीं गया है और सरकार को इससे कोई नुकसान नहीं हुआ है। उन्होंने उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष से भी इनकार किया कि कथित सह साजिशकर्ता एवं उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के स्वामित्व या नियंत्रण वाली कंपनी में भारी संख्या में राशि आई।