मैंने जो पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई ) बनाया है वो जुगाड़ तकनीक से बनाया है क्योंकि हमारे अस्पताल में छह कोरोना पॉजिटिव मरीज आ चुके हैं. नौकरी तो करनी है. उससे पीछे तो हट नहीं सकते हैं लेकिन सरकार की तरफ से हमें पीपीई अभी भी उपलब्ध नहीं है.’’
यह कहना है बिहार के भागलपुर मेडिकल कॉलेज एंव अस्पताल में स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉक्टर गीता रानी का.
गीता रानी और उनके पति दोनों भागलपुर में डॉक्टर हैं. सरकार द्वारा पीपीई उपलब्ध नहीं कराने की स्थिति में दोनों ने जुगाड़ तकनीक अपनाते हुए कार के कवर से एक किट बना लिया है. दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने गीता रानी की तारीफ की है.
गीता रानी न्यूजलॉन्ड्री को बताती हैं, ‘‘मैं सीधे रूप से कोरोना मरीजों के साथ काम नहीं कर रही हूं लेकिन उसी अस्पताल में हूं. सभी मरीज उसी एम्बुलेंस से आते है जिस एम्बुलेंस से करोना पीड़ित आते हैं. क्वारेंटाइन सेंटर भी अस्पताल के बीचों-बीच बना है. ऐसे में हमें खुद की सुरक्षा के लिए पीपीई की ज़रूरत है. सरकार ने उसे मुहैया नहीं करवाया है इसलिए हमें जुगाड़ से यह इंतजाम करना पड़ा. यहां तो डॉक्टर्स के पास पर्याप्त मात्रा में एन 95 मास्क भी नहीं है.’’
यह कहानी सिर्फ गीता रानी या बिहार के स्वास्थ्यकर्मियों की नहीं बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों से ऐसी ख़बरें आ रही हैं जहां स्वास्थ्यकर्मी सुरक्षा उपकरणों की भयावह कमी से जूझ रहे हैं. यहां तक की राजधानी दिल्ली के स्वास्थ्यकर्मियों को भी इस परेशानी से दो चार होना पड़ रहा है. जिसका नतीजा यह हुआ कि अब कई स्वास्थ्यकर्मी बीमार पड़ने लगे हैं और कई इस्तीफा देने को मजबूर हैं.
इस्तीफा दे रहे हैं डॉक्टर्स
दिल्ली स्थिति हिन्दू राव अस्पताल में बीते कई दिनों से लगातार स्वास्थ्यकर्मियों के इस्तीफे की ख़बर आ रही है. हिन्दू राव अस्पताल में काम करने वाले एक कर्मचारी के मुताबिक पीपीई तो दूर, डॉकटरों, नर्सों औऱ अन्य स्टाफ के लिए एन 95 मास्क तक उपलब्ध नहीं है. इसके कारण डॉक्टर और नर्स सभी डरे हुए हैं. एन 95 सुरक्षित मास्क माना जाता है. यह थ्री लेयर मास्क है.
दैनिक हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल में पिछले कुछ दिनों के दौरान हर रोज दो से तीन डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी अस्पताल प्रशासन को अपना इस्तीफा सौंप रहे हैं. इसे देखते हुए अस्पताल प्रशासन ने एक नोटिस निकाला.
इस नोटिस में डॉक्टरों और कर्मचारियों को सख्त चेतावनी दी गई है कि कोरोनावायरस संक्रमण के दौर में जो भी डॉक्टर और नर्सिंग कर्मचारी इस्तीफा देंगे उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
हिन्दू राव अस्पताल के एक डॉक्टर नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘‘अस्पताल में सुरक्षा उपकरणों की काफी कमी है. यहां कोरोना के मरीजों के लिए एक वार्ड बनाया गया है, लेकिन फिलहाल किसी भी संदिग्ध या कोरोना पीड़ित का उपचार यहां नहीं चल रहा. लेकिन बाकी मरीज आ रहे हैं. उसमें से कोई भी कोरोना पीड़ित हुआ तो डॉक्टर्स और नर्स आसानी से उसकी चपेट में आ सकते हैं. ज्यादातर डॉक्टर परिवार के दबाव में इस तरह का निर्णय लेने पर मजबूर हो रहे हैं.’’
तमाम स्वास्थ्यकर्मियों की सुविधाओं के लिए आवाज़ उठाने वाले डॉक्टर संजीव चौधरी दिल्ली के मंडावली स्थित सेंट्रल जेल में कार्यरत हैं. ये लगातार अपने ट्विटर के जरिए सरकार और जिम्मेदार अधिकारियों को इस तरफ ध्यान देने के लिए कहते आ रहे हैं.
डॉक्टर चौधरी की माने तो स्वास्थकर्मियों की सुरक्षा की अनदेखी से आने वाले दिनों में पूरे देश में स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है. जब संजीव ने हिन्दू राव अस्पताल में डॉक्टरों की परेशानियों का मुद्दा उठाया तो नार्थ-ईस्ट दिल्ली नगर निगम की कमिशनर वर्षा जोशी उनपर नाराज़ हो गईं थी.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए संजीव कहते हैं, ‘‘जब मैंने हिन्दू राव के अपने साथियों के लिए आवाज़ उठाई तो कमिश्नर वर्षा जोशी ने कहा कि यह गलत सूचना है. हमारे डॉक्टरों के पास एन 95 मास्क है. लेकिन एक दिन बाद ही मेयर अवतार सिंह अस्पताल में राउंड पर थे और उन्होंने जो तस्वीर अपने सोशल मीडिया पर जारी किया उसमें वो खुद तो एन 95 मास्क लगाए नजर आ रहे हैं लेकिन उनके पीछे जो डॉक्टर्स है वो नोर्मल मास्क लगाये हुए हैं.’’
First you dont provide PPE , doctors and nurses beg you for weeks for them yet you remain ignorant ,and when there is no option left with doctors and nurses but to preserve themselves then you do this@AvtarSi62019107 @suraiya95 @ManojTiwariMP @VijayGoelBJP @docvjg @MoHFW_INDIA pic.twitter.com/qy1xwcG4RE
— Dr Sanjeev Choudhary (@drsanjeevindian) April 1, 2020
संजीव कहते हैं, ‘‘खबरों में और सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि स्वस्थकर्मियों को तमाम सुविधाएं दी जा रही हैं लेकिन ज़मीनी सच्चाई बिलकुल अलग है. डॉक्टरों के पास सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. एक मास्क उन्हें चार से पांच दिन तक लगाने पर मजबूर होना पड़ रहा है. जबकि वह एक दिन में ही खराब हो जाता है. मास्क नहीं लगाने से इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. स्वास्थ्यकर्मियों को तो एन 95 मास्क के बगैर अस्पताल के अंदर जाना ही नहीं चाहिए क्योंकि सबसे ज्यादा वायरस अस्पताल में ही होता है.’’
संजीव की बातों से एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर आदर्श प्रताप सिंह भी इत्तफाक रखते हैं. आदर्श रेसिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन, एम्स के प्रेसिडेंट हैं.
दुनियाभर में दहशत मचाने के बाद कोरोना ने भारत में दस्तक दिया. भारत के पास तैयारी के लिए समय था लेकिन आज स्वास्थ्यकर्मियों को परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है.
क्या सरकार ने तैयारी नहीं की थी. इस सवाल के जवाब में न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए डॉक्टर आदर्श कहते हैं, ‘‘कोई भी सरकार स्वीकार नहीं करेगी की उसने तैयारी नहीं की थी, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है. सरकार कोशिश करती नज़र आ रही है लेकिन लोगों तक चीजें नहीं पहुंच पा रही है. दीये जला रहे हैं, अच्छी बात है लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ खास असर नहीं दिख रहा है. अभी आप बंगाल में देखिए कोई कपड़े का गाउन पहनकर तो कोई रेनकोट पहनकर अस्पतालों में काम कर रहा है. यही हकीकत है.’’
आदर्श आगे कहते हैं, ‘‘इस वक़्त पूरे भारत में यूनिफॉर्म एडवाइजरी होनी चाहिए जिसपर स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइंस होनी चाहिए. अभी हम लोग इससे बहुत दूर है. वर्तमान में यह स्थिति है तो आने वाले समय में जब हम बहुत सारे मरीजों का अनुमान लगाकर बैठे हुए हैं, तब क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. हमारी उसके लिए तैयारी नहीं है.’’
दिल्ली के अस्पतालों में पीपीई की अनुपलब्धता पर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने भी चिंता जाहिर की थी. उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की थी कि दिल्ली सरकार के पास पीपीई खत्म हो रहा है. जल्द से जल्द उसे उपलब्ध कराया जाए. राज्य सरकार की मांग के बाद ख़बर है कि केंद्र सरकार ने 27 हज़ार पीपीई किट उपलब्ध कराया है.
अगर बिहार की बात करें तो वहां की राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से पांच लाख पीपीई किट की मांग की थी लेकिन दिया गया महज चार हज़ार.
बिहार से एक ख़बर यह भी आई कि वहां के कई सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर कई दिनों तक ऑफिस ही नहींगए. देश के अलग-अलग राज्यों से लाखों की संख्या में मजदूर बिहार पहुंचे हैं ऐसे में डर है कि यह महामारी वहां बड़ा रूप न ले ले.
इन तमाम सवालों पर पटना में रहने वाले पत्रकार पुष्यमित्र न्यूज़लॉन्ड्रीसे बात करते हुए कहते हैं, ‘‘पहले चार हज़ार आया था लेकिन उसके बाद 15 हज़ार और पीपीई किट आया है. बिहार में स्थिति अभी नियंत्रण में दिख रही है. बहुत कम मामले सामने आ रहे हैं. लेकिन सवाल सिर्फ डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर उठाया जा रहा है. सुरक्षा किट की ज़रूरत सिर्फ डॉक्टर्स को ही नहीं बल्कि ज्यादातर स्वास्थकर्मियों को है. अस्पताल में जो भी कोरोना मरीजों के आसपास होता है मसलन वार्ड बॉय जो वहां उस कक्ष की सफाई करता है, जहां कोरोना मरीज रखे जाते हैं. इसके अलावा नर्स और उन आशा वर्कर्स को भी सुरक्षा किट देने की ज़रूरत है जो बाहर से आए लोगों की स्क्रीनिंग कर रही हैं.’’
पुष्यमित्र आगे कहते हैं, ‘‘बिहार सरकार ने राज्य में लौटे लाखों मजदूरों की स्क्रीनिंग के लिए आशा वर्कर्स को लगाया हुआहै. वो घर-घर जाकर उनकी जांच कर रही हैं. उनके पास पीपीई किट छोड़िए एन 95 मास्क तक नहीं है. ऐसे में उनपर इसका ज्यादा असर होगा. डॉक्टर्स अपनी मांग तो मजबूती से उठा लेते हैं. लेकिन वार्ड बॉय और आशा वर्कर्स अपनी आवाज़ मजबूती से नहीं उठा पाते है. बेहतर हो कि स्वास्थ्य से जुड़े तमाम लोगों की सुरक्षा की बात हो. अस्पताल में रहने वाला हर शख्स वायरस के चपेट में आ सकता है.’’
डॉक्टर्स द्वारा इस्तीफा देने या काम से गायब रहने के सवाल पर डॉ आदर्श कहते हैं, ‘‘मेरे आसपास तो अभी किसी डॉक्टर ने नहीं छोड़ा है लेकिन जो भी छोड़ रहे हैं मुझे लगता है उसके पीछे सुरक्षा नहीं मिलने का आक्रोश और डर है. बिना सुरक्षा के कोई अपनी जिंदगी कैसे खतरे में डाल दे. सबका अपना-अपना मानना है. डॉक्टर भगवान का रूप है लेकिन एक हद के बाद उनसे नहीं हो पा रहा होगा तो वे इस्तीफे का निर्णय ले रहे होंगे.’’
एम्स आरडब्लूओ के पूर्व अध्यक्ष हरजीत सिंह भट्टी सरकार की तैयारी में मौजूद खामियों को बताते हुए कहते हैं, ‘‘हाल ही में एक ख़बर आई थी कि पीपीई बनाने वाली कंपनी ने कहा कि पांच सप्ताह हो गए सरकार ने पीपीई बनाने की अनुमति नहीं दी. ऐसी महामारी में पांच सप्ताह बहुत बड़ा समय होता है. पांच सप्ताह में पूरी दुनिया पलट जाती है. उसके बाद अभी भी सरकार गंभीर नहीं दिख रही है. आप प्रधानमंत्री का संदेश देखें तो उसमें कोई गंभीरता नज़र आ नहीं रही है. वो ताली थाली की बात करते हैं, दीये जलाने की बता करते हैं. वे अगर एक बार बता दें कि हमने इस कंपनी से बात कर ली है. हम यहां से आपको पीपीई उपलब्ध करा रहे है. प्रधानमंत्री पर सबको भरोसा होता है. लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहे है.’’
हरजीत सिंह भट्टी कहते हैं, ‘‘हम एक तरफ वायरस तो दूसरी तरफ सरकार की उदासीनता सेलड़ रहे हैं.’’
अगर स्वास्थ्यकर्मी बीमार होंगे तो कौन करेगा इलाज
7 अप्रैल तक भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 4683 हो गई है जिसमें से 138 की मौत हो गई है. आम लोगों के साथ-साथ अब डॉक्टर भी कोरोना की चपेट में आने लगे हैं. आदर्श के अनुसार दिल्ली में 12 से 15 डॉक्टर्स कोरोना के चपेट में आ चुके हैं.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मुंबई के एक ही अस्पताल में26 नर्स और तीन डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. इसके बाद पूरे अस्पताल को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है.
पांच अप्रैल को जब प्रधानमंत्री की अपील के बाद देशभर में एकता के प्रदर्शन के लिए दीये जलाए जा रहे थे उसी वक़्त महाराजा अग्रसेन अस्पताल में पांच स्वास्थकर्मियों के साथ-साथ एक डॉक्टर भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे.
जीवनदाता और योद्धा की तरह अस्पतालों में काम कर रहे 23 स्वास्थ्यकर्मी दिल्ली में कोरोना का शिकार हो गए। 200 से ज्यादा आइसोलेशन में हैं। आप पटाखे जलाते रहें, भीड़ बनाकर जश्न मनाते रहें। जब अस्पतालों में योद्धा ही नहीं बचेंगे तो कैसे जश्न मनाओगे? #9baje9mintues #9बजे9मिनट
— Hemant Rajaura (@hemantrajora_) April 5, 2020
जानकारों का मानना है कि अगर स्वास्थ्यकर्मी इसकी चपेट में आते हैं तो स्थिति भयावह हो जाएगी. मसलन एक डॉक्टर या नर्स ईलाज के दौरान सिर्फ एक मरीज से नहीं मिलते बल्कि कई मरीजों से मिलते हैं. ऐसे में वे कई लोगों तक यह बीमारी पहुंचा सकते हैं.
हरजीत सिंह भट्टी बताते हैं, ‘‘हाल ही में गंगाराम अस्पताल के 108 स्वास्थ्यकर्मियों को क्वारेंटाइन किया गया. एक साथ 108 स्वास्थ्यकर्मी कम हो गए. ऐसे में कोई अस्पताल कैसे चलेगा. वहां पर आने वाले मरीजों का क्या होगा. वहां पर कई गंभीर मरीज होंगे. अभी कहा जा रहा है कि कोरोना के चपेट में आने का बावजूद भी 98 प्रतिशत लोगों को बचाया जा सकता है लेकिन यह तभी बचाया जा सकता है जब डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी खड़े रहे. अगर डॉक्टर्स मजबूती से खड़े नहीं होंगे तो स्थिति भयावह हो सकती है.’’
डॉक्टर आदर्श कहते हैं, अगर डॉक्टर्स ज्यादा संख्या में पॉजिटिव आते है तो इससे बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है. एक डॉक्टर से यह कई लोगों में बहुत जल्दी से फ़ैल सकता है. डॉक्टर को तो पता भी नहीं चलेगा कि वह कोरोना पॉज़िटिव हो गया है. जब तक पता चलेगा तब तक वह कई लोगों का ईलाज कर चुका होगा. इन सबको ध्यान में रखकर सरकार बिलकुल नहीं सोच रही है.अभी शुरूआती दौर में ही लोगों को पीपीई नहीं मिल रहा है तो आगे स्थिति बदहाल होने पर क्या होगा यह सोचना बेहद ज़रूरी है.’’
सवाल उठाने पर प्रशासन बना रहा दबाव
एक तरफ जहां प्रधानमंत्री मोदी डॉक्टर्स के लिए बालकनी में खड़े होकर ताली बजाने की बात करते नज़र आते हैं वहीं कई जगहों पर डॉक्टर्स के साथ दुर्व्यवहार की भी ख़बरें आ रही हैं. उनको अपने किराये के कमरे से निकाले जाने की ख़बरें आई तो दूसरी तरफ सूरत में एक पड़ोसी ने अपने घर के सामने डॉक्टर के गुजरने पर हंगामा खड़ाकर दिया.
इन तमाम बातों के बीच जब डॉक्टर अपनी मांग उठा रहे हैं तो अस्पताल प्रशासन उनपर ऐसा नहीं करने का दबाव बना रहा है. इसको लेकर मंगलवार को एम्स के रेसिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है.
पत्र में क्या लिखा गया है और इसे लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ी. इस सवाल पर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर आदर्श कहते हैं, ‘‘पत्र लिखने की ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि वर्तमान में स्वास्थ्यकर्मियों की कुछ वाजिब समस्याएं हैं. जिनका वो रोजाना सामना कर रहे हैं. जैसे पीपीई की समस्या, रहने की समस्या और आने-जाने की समस्या. जब वे अपने कॉलेज या अस्पताल में इसको लेकर आवाज़ उठाते हैं तो प्रशासन उनपर दबाव बना रहा है. बंगाल में एक डॉक्टर को 16 घंटे जेल में बैठाया गया. कई जगहों पर प्रशासन ने कहा है कि आपका जो व्हाट्सएप ग्रुप है उसपर नजर रखी जाएगी और उसकी डिटेल पुलिस को दी जाएगी.’’
आदर्श कहते हैं, ‘‘इस प्रकार की हरकत करके सरकारें क्या चाहती हैं. वो चाहती है कि जो समस्याएं है उसे ना कहा जाय. सरकार को हमारे फीडबैक को सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए. उसपर काम करना चाहिए. कमियां हैं और उसमें सुधार की ज़रूरत है ना कि जो कमियां बताए उसपर प्रशासन दबाव बनाए. समस्या उठाने वाले का ट्वीट डिलीट कराकर आप समस्या को खत्म नहीं कर रहे हैं.’