नई दिल्ली

साल 2002 में गुजरात के गोधरा में हुए दंगों में दोषी 17 लोगों में से 13 को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी। वहीं अन्य 14 क गुजरात के बाहर रहकर समाज सेवा करने का आदेश दिया गया। 13 दोषियों को दो भाग में बांटकर एक भाग को मध्यप्रदेश के इंदौर भेजा जाएगा जबकि अन्य को जबलपुर से 500 किलोमीटर दूर साल 2002 के 28 फरवरी के मेहसाणा जिले की विजयपुर तहसील के सरदारपुर गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के 33 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। यह नरसंहार उस समय हुआ था, जिससे पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बों में हुए अग्निकांड में 59 लोग मारे गए थे। सुप्रीम कोर्ट की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने मामले में 76 लोगों को गिरफ्तार किया। 2009 में 73 के खिलाफ आरोप तय हुए थे।

बीते साल दिसंबर में गुजरात विधानसभा में पेश की गई नानावती-मेहता आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि गोधरा ट्रेन जलाने के दंगे प्रोयोजित नहीं किए गए थे। इसके अलावा आयोग ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उस दौरान की गुजरात सरकार को क्लीन चिट दे दी थी।

गौरतलब है कि भीड़ ने एक मार्च 2002 को गुजरात के आणंद जिले के ओडे कस्बे के पीरवाली भगोल इलाके में एक घर में आग लगा दी थी। इस घटना में अल्पसंख्यक समुदाय के 33 सदस्य जिंदा जल गए थे । इसमें नौ महिलाएं और इतने ही बच्चे थे। गोधरा ट्रेन अग्निकांड के दो दिन बाद यह घटना हुई थी। अग्निकांड के कारण समूचे राज्य में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी।

इसके बाद मामला कोर्ट पहुंचा जहां गुजरात उच्च न्यायालय ने 2002 के ओडे दंगा मामले में 19 लोगों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन तीन लोगों को बरी कर दिया। ओडे में दंगे की इस घटना के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के 23 लोगों को जिंदा जला दिया गया था।  निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर की गयी याचिकाओं पर न्यायमूर्ति अकील कुरैशी और न्यायमूर्ति बी एन करिया की पीठ ने आज 14 अभियुक्तों को उम्रकैद के साथ ही पांच अन्य को सात साल जेल की सजा को कायम रखा।

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